Sunday, December 3, 2023

गुरु प्रो.के.राय के अमोघ आशीर्वाद का परिणाम है -प्रो.के.राय वाचनालय की स्थापना –डा.राजेन्द्र प्रसाद

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आरा। प्रसिद्ध इतिहासकार प्रो.के. राय के सानिध्य में अनुसंधान के दरम्यान स्कूल प्रिंसिपल डॉ राजेंद्र प्रसाद अपने गुरु से इतने अधिक प्रभावित हुए कि अपने गुरु के मार्गदर्शन में शाहाबाद बुद्धिजीवी मंच के बैनर तले सैकड़ों सेमिनार का आयोजन किया।उपर्युक्त “प्रो.के.राय वाचनालय” की स्थापना शाहाबाद बुद्धिजीवी मंच के भागीरथ प्रयास का परिणाम है। विश्व विश्रुत इतिहासकार प्रो.के.राय का जन्म 31 जनवरी,1939 को वर्तमान झारखंड राज्य के हजारीबाग जनपद के नजदीक खरिका गांव में हुआ था।आठ वर्ष की उम्र में ही 1947 में चतरा जनपद के सिमरिया प्रखंड के खपिया गांव मेंं मुन्नी राय की बड़ी बेटी लक्ष्मी से प्रणयसूत्र में बंध गए।1957 मेंं मैट्रिक,1959 में आई.ए.और 1961 में संतकोलम्बस कॉलेज हजारीवाग से स्नातक एवं 1963 में पटना विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर प्रथम श्रेणी से उतीर्ण किए ।अपनी अठासी वर्ष की उम्र मेंं अभी तक अस्सी से अधिक अनुसंधानपरक इतिहास की पुस्तकों को लिख चुके हैं।प्रो.राय 4 अप्रैल,1967 ई. में बीपीएससी से चयनित होकर एच.डी.जैन कॉलेज,आरा में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर योगदान दिए थे।इसके पूर्व नालंदा कॉलेज, पटना विश्वविद्यालय, बी.एन.कॉलेज, देवघर कॉलेज में अपनी सेवा एक सफल व्याख्याता के रूप में दे चुके थे।1997 मेंं वीकेएसयू में इतिहास विभाग के संस्थापक विभागाध्यक्ष एवं डीन बने।उनके शब्दों ने महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों को अपना दिवाना बना लिया था।उनकी चर्चित पुस्तकें हैं;- मॉडर्न यूरोप, फ्रिडम स्ट्रगल,ऐंसिएंट इंडिया, इतिहास दर्शन, मॉडर्न एशिया, मॉडर्न इंग्लैंड, प्राचीन भारत की सामाजिक-आर्थिक इतिहास,अमेरिका का इतिहास, पश्चिम का उदय,द वल्गर वल्चर, दास्तां-ए-आजाद भारत,मधेशी आंदोलन, आदि अनेक कालजयी पुस्तकों की रचना किए हैं।यह हर किसी के वश की बात नहीं है।निस्संदेह इतिहास लेखन में प्रो.राय का अहम योगदान रहा है।इनका मानना है कि आप तथ्यों के आधार पर इतिहास को सामने लाएं।वे प्रगतिशील विचारधारा से प्रेरित हैं और सांप्रदायिकता के खिलाफ हमेशा मुखर रहे हैं।वे सनातन परंपरा के सच्चे अनुगामी हैं।वे बेलॉस रुप से कहते हैं कि ईश्वर को साक्षी मानकर शोध करें।एक मात्र लक्ष्य अतीत का निष्पक्ष और सच्चा स्वरूप प्रस्तुत करना चाहिए। क्रांतिकारी लेखक व प्राचार्य डॉ. राजेन्द्र प्रसाद प्रो.राय की कृतियों का हिन्दी अनुवाद करते हुए लिखते हैं कि प्रो.राय की पुस्तक ‘ द वल्गर वल्चर ‘ के अनुसार ” नील गगन में उड़ने वाले गिद्धों की टोली जब धरती पर उतरकर पशु शवों को नोच-नोच कर खाने लगी,तो उनकी पंगत में राजनेता, नौकरशाह और उद्योगपति भी शामिल हो गए।इस पर अश्लील गिद्धों ने समवेत स्वर में कहा कि असली गिद्ध तो आप सफेदपोश हुए हैं, जो प्राकृतिक संसाधनों का शोषण-दोहन तो करते ही हैं, बैतूलमाल(राजकोष) को भी खाली कर देते हैं।” अन्य पुस्तक “सदभावना” मेंं लिखते हैं कि सदभावना से ही असहिष्णुता की समाप्ति हो सकती है।”प्रो.राय की पुस्तक”धर्म की खोज ” में कर्मकाण्डों का पोस्टमार्टम किया गया है।एक सेमिनार में उन्होंने बेबाक एवं बेलॉस ढंग से कहा कि उग्र राष्ट्रवाद फासीवाद एवं नाजीवाद से कम खतरनाक नहीं है।” गर्भ से कब्र तक महिलाएं महफूज नहीं है।” ‘कोई जन्मजात नक्सली नहीं होता, सामाजिक एवं आर्थिक हालातों ने उसे विपथगामी बना दिया है।वे भी इसी भारत मां के पुत्र हैं।उन्हें समाज की मुख्य धारा में जोड़ने की आवश्यकता है।”विवाद ‘मवाद ‘बन जाता है और इसके लिए’सर्जिकल स्ट्राइक’ की जरुरत पड़ती है।लगता है, भारत-पाक का विवाद मवाद बन चुका है।इस समस्या का समाधान भारत के सपूत मोदी ही मुमकिन कर सकते हैं।’प्रो.के.राय का मानना है कि हिंसा से हिंसा का समाधान नहीं हो सकता।राजनेता दंगे-फसाद कराने से बाज आएं।सबका साथ सबका विकास में पारदर्शिता लाजिमी है।”शहीदों के मजार पर हर साल लगेंगे मेलें।”शहादत कभी बेकार नहीं जाती और यह नयी युवा पीढ़ियों को अनुप्राणित व प्रेरित करती है। “प्रो.के.राय वाचनालय ” के बारे में वरीय उपसमाहर्ता एवं साहित्यकार बुद्ध प्रकाश लिखते हैं कि”किसी तीर्थ स्थल पर जाने के बाद भक्त को जैसी सुखद अनुभूति होती है, वैसी ही अनुभूति प्रो.के.राय वाचनालय मेंं आने के बाद हुई।पुस्तकों को जिस करीने से सहेज कर रखा गया है, वह कोई महान पुस्तक प्रेमी ही कर सकता है।मुझे पूर्ण विश्वास है कि कालक्रम में यह पुस्तकालय एक महान छतनार वृक्ष के रुप में विकसित होता जाएगा, जिसकी शीतल छाया में सभी ज्ञानपिपासुओं की पिपासा शांत होगी।” यह पक्ति प्रख्यात इतिहासकार प्रो.के.राय एवं इनके प्रिय शिष्य डॉ.राजेन्द्र प्रसाद के बारे में बहुत कुछ कह जाती है।आज प्रो.के.राय कहते हैं कि जिंदगी शोला, शबनम और मधुवन है।सत्यं शिवं सुन्दरम ही सब कुछ है।मुसीबतों से आदमी को नहीं घबड़ाना चाहिए।चुनौतियों का सामना करना ही मर्दानगी है।यद्यपि कि वे आज शारीरिक एवं मानसिक रूप से अस्वस्थ हैं।लेकिन …..कोई भी विभाग उनकी खबर लेने वाला नहीं है।

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