आरा | प्यारा सजा है तेरा द्वार भवानी, भक्तों की लगी है कतार, या देवी सर्वेभूतेषू शक्तिरूपेण संस्थिता.. जैसे मधुर गीतों के बीच शक्तिस्वरूपा मां दुर्गा की आराधना में पूरा शहर डूब गया है। घर-घर मे कलश स्थापना के साथ ही भक्ति का ज्वार चरम पर पहुंच गया। माता के मंदिरों में माता की भक्ति की डोर से बंधा जनसैलाब उमड़ पड़ा। ऐतिहासिक माँ अरण्य देवी मंदिर, बखोरापुर काली मंदिर सहित जिले के सभी मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़, उत्साह, उमंग और मां के दर्शन की आतुरता आयोजन को अद्भुत- अकल्पनीय बना रही थी। प्रतिमाओं की बात की जाए तो प्राय: सभी मंदिरों की प्रतिमाएं अपने भव्य रूप से भक्तों को आत्मविभोर करने वाली हैं।
वैसे तो भोजपुर जिला अनेक गौरवशाली अतित को अपने अंदर समेटे हुए हैं अनेक प्राचीन और ऐतिहासिक धार्मिक स्थल स्थित है जहाँ हर किसी को जाने का मन करता है लेकिन नवरात्रि का पावन महीना है हर परिवार कही न कही के माता मंदिरों में दर्शन करने की योजना जरूर बनाते है वैसे में मैं आरा स्थित संक्षेप में माँ के चार मन्दिरो के बारे में बताता हूं जहाँ जब भी आरा आये माँ की जरूर दर्शन करें।
माँ आरण्य देवी : भोजपुर के जिलामुख्यालय का नामकरण जिस आरण्य देवी के नाम पर हुआ है वे इलाके के लोगों की आराध्य हैं। यह नगर की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती है। मंदिर तो बहुत पुराना नहीं है पर यहां प्राचीन काल से पूजा का वर्णन मिलता है। संवत् 2005 में स्थापित इस मंदिर के बारे में कई किदवंतियां प्रचलित हैं। इसका जुड़ाव महाभारतकाल से है। इसे भगवान राम के जनकपुर गमन के प्रसंग से भी जोड़ा जाता है। इस मंदिर के चारो ओर पहले वन था। पांडव वनवास के क्रम में आरा में भी ठहरे थे। पांडवों ने यहां आदिशक्ति की पूजा-अर्चना की। मां ने युधिष्ठिर को स्वप्न में संकेत दिया कि वह आरण्य देवी की प्रतिमा स्थापित करे। तब धर्मराज युधिष्ठिर ने यहां मां आरण्य देवी की प्रतिमा स्थापित की थी।वास्तुकला संवत् 2005 में स्थापित यह मंदिर संगमरमर की है।



मंदिर का मुख्य द्वार पूरब की तरफ है। मुख्य द्वार के ठीक सामने मां की भव्य प्रतिमाएं हैं। द्वापर युग में इस स्थान पर राजा म्यूरध्वज राज करते थे। इनके शासन काल में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन के साथ यहां पहुंचे थे। उन्होंने राजा के दान की परीक्षा ली। इस मंदिर में छोटी प्रतिमा को महालक्ष्मी और बड़ी प्रतिमा को सरस्वती का रूप माना जाता है। स्थानीय रेलवे स्टेशन से उत्तर तथा शीश महल चौक से लगभग 2 सौ मीटर उत्तर-पूर्व छोर पर स्थित है अति प्राचीन आरण्य देवी का मंदिर। यहां आवागमन के साधन सुलभ उपलब्ध रहते हैं। जहां मंदिर के आस-पास पूजा सामग्रियों की दुकानें सजी रहती है।
बखोरापुर काली मंदिर : भोजपुर जिला के बड़हरा प्रखंड अंतर्गत बखोरापुर में मां काली का भव्य मंदिर है। मान्यताओं के अनुसार ये 1862 के समय एक छोटा सा मंदिर था, जहां देवी पिंडी रूप में स्थापित थीं। 2003 में भव्य मंदिर का निर्माण किया गया और देवी की प्रतिमा को स्थापित किया गया। नवरात्रि के अवसर पर लाखों श्रद्धालुओं की यहां भीड़ उमड़ती है। एक कहानी के मुताबिक 1862 के समय में बखोरापुर गांव में हैजा फैला था। 500 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी और सैकड़ों लोग बीमार थे। उसी समय गांव में एक साधु ने प्रवेश किया। उन्होंने मां काली की पिंडी स्थापना करने की बात कही। साथ ही ये भी कहा कि ऐसा करने से यह बीमारी रुक जाएगी।



साधु के कहने पर गांव के बड़े-बुजुर्गों ने नीम के पेड़ के पीछे मां काली की नौ पिंडी स्थापित कर पूजा-अर्चना शुरू कर दी। इसके बाद वो साधु चंद दिनों बाद अदृश्य हो गए। साथ ही हैजा भी गांव से धीरे-धीरे समाप्त हो गया। जिस स्थान पर पिंडी स्थापना की गई थी, उसके बगल से नाला बहता था। कुछ दिनों बाद एक आकाशवाणी हुई, जिसमें यह सुनने को मिला कि मां की जो पिंडी है, उसे उस नाले के पास से हटाया जाए, नहीं तो मां यहां से चली जाएगी। लोगों का कहना है कि वो आकाशवाणी मां ने की थी। इसके बाद ग्रामीणों ने मां की पिंडी को वहां से दूसरे स्थान पर ले जाकर स्थापित किया। इसके बाद 1862 में ही वहीं उनका छोटा सा एक मंदिर बनाया गया। स्थापना के बाद गांव के लोग भव्य पूजा पाठ, कीर्तन महायज्ञ में लग गए। उस समय से ही बखोरापुर मंदिर काली मां के नाम से प्रचलित है।
बाबू बाजार स्थित काली मंदिर : शहर के बिचो-बीच स्थित बाबू बाजार में एक अत्यंत प्राचीन काली मंदिर। देश के अमर स्वतंत्रता सेनानी बाबू कुंवर सिंह से जुड़े स्मृति चिह्न आकर्षक बन सकते है। उनसे जुडी ऐतिहासिक स्मृतियां जगदीशपुर से लेकर आरा तक फैली है। स्मृति चिह्नों को जीर्णोद्धार कर एतिहसिक स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है।



उनकी स्मृतियों में ख़ास बाबू बाजार स्थित काली मंदिर भी है। यह वह काली मंदिर है, जहां बाबू कुंवर सिंह युद्ध या किसी खास मिशन पर निकलने से पहले अपने पैतृक गांव से घोड़े पर सवार होकर स्थानीय बाबू बाजार मुहल्ले में आते थे। बाबू बाजार आने के बाद वे देवी मां की पूजा-अर्चना के बाद ही अपने अभियान की शुरुआत करते थे। मंदिर भवन का रंग-रोगन व मरम्मत कराकर यहां के व्यवस्थापक उसके अस्तित्व को किसी तरह बचाये हुए हैं। आज भी यह मंदिर लोगों के लिए श्रद्धा का केन्द्र बनी हुई है।
महथिन मन्दिर : भोजपुर जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर की दूर पर बिहिया में स्थित है लोक आस्था की प्रतीक प्रसिद्ध महथिन माई मंदिर। महथिन माई के प्रति लोगों की गहरी आस्था है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कोई यदि जीवन में गलत आचरण से धन प्राप्त करता है, धन और बल के बदौलत लोगों पर गलत तरीके से प्रभाव स्थापित करना चाहता है तो लोग एक ही बात कहते है कि यह महथिन माई की धरती है, यहां न तो ऐसे लोगों की कभी चला है न चलेगा।



इस मंदिर का कोई लिखित इतिहास तो नहीं है पर प्रचलित इतिहास के अनुसार एक जमाने में इस क्षेत्र में हैहव वंश का राजा रणपाल हुआ करता था जो अत्यंत दुराचारी था। उसके राज्य में उसके आदेशानुसार नव विवाहित कन्याओं का डोला ससुराल से पहले राजा के घर जाने का चलन था। महथिन माई जिनका प्राचीन नाम रागमति था पहली बहादुर महिला थी जिन्होंने इस डोला प्रथा का विरोध करते हुए राजा के आदेश को चुनौती दी। बताया जाता है कि राजा के सैनिकों और महथिन माई (रागमति )के सहायकों के बीच जम कर युद्ध हुआ। इस दौरान महथिन माई खुद को घिरता देख सती हो गई। उनके श्राप से दुराचारी राजा रणपाल के साथ उसके वंश का इस क्षेत्र से विनाश हो गया। आज भी हैहव वंश के लोग पूरे शाहाबाद क्षेत्र में न के बराबर मिलते हैं।