हमारा देश विश्व गुरु बनने को तैयार है आज हर मायने में भारत बाकी देशों के मामलें में अग्रणी है और पहले भी था परन्तु आज पुस्तकालयों की दुर्दशा पर सरकार उदासीन दिख रही है। एक समय पूर्व भारत में नालंदा जैसे विश्विद्यालय पूरे विश्व में ख्याति प्राप्त था। कहा जाता है कि यहां करीब तीन लाख से ज्यादा पुस्तकें हुआ करती थी । इस विश्विद्यालय में करीब नौ तल का एक भव्य पुस्तकालय हुआ करता था बहुतों की संख्या में विद्याथी एक साथ पढ़ा करते थे। इसी क्रम में विक्रमशीला विश्विद्यालय में भी साहित्य ,व्याकरण, और न्याय दर्शन के बहुत सारी किताबें उबलब्ध थी। दुर्भाग्य वश आज ये विश्व विख्यात विश्वविद्याल जो भारत का धरोहर है वो खंडहर बन कर रह गए हैं। आज हमारे देश में वर्तमान सार्वजनिक पुस्तकालयों की जो स्थिति है वो भी चिंतनीय है। 2011 की जनगणना के अनुसार,ग्रामीण क्षेत्रों में 70,817 पुस्तकालय और शहरी क्षेत्रों में 4,580 पुस्तकालय थे। वर्तमान में नेशनल मिशन ऑफ़ लाइब्रेरीज के रिकॉर्ड के अनुसार भारत में पंजीकृत लाइब्रेरी की कुल संख्या 5,478 है। अपने देश के पुस्तकालयों की हालत ऐसी है कि एक पुस्तकालय में जो पुरानी किताबें रख दी गई फिर दुबारा शायद ही कोई नई किताब आयी हो । कई सार्वजनिक पुस्तकालय तो ऐसे भी है की उनके पास समाचार पत्र और पत्रिकाओं के लिए भी पर्याप्त पैसा नहीं हैं।



इस पुस्तकालय के मुद्दे पर ना तो कोई विद्याथी आवाज उठाता है और ना ही समाज के प्रबुद्धजन। क्रेन्द्र सरकार ,राज्य सरकार या बड़े अधिकारी पुस्तकालयों के प्रति कोई विशेष ध्यान नहीं रखते । मजे की बात तो ये है कि चुनाव के समय में भी कभी पुस्तकालय के निर्माण ,किसी पुस्तकालय के सरंक्षण की बात नहीं उठती इसके लिए शायद ही कोई योजना भी हो अगर होगी भी तो वो योजना निष्क्रिय ही साबित हो रही है। अगर बात करें सरकारी विद्यालय और विश्विद्यालय के पुस्तकालयों की तो देश में कई ऐसे पुस्तकालय हैं यहां किताबों से ज्यादा धूल और गंदगी मिल जायेगी। विश्वविद्यालय में पाठ्यक्रम से जुड़ी हुई किताबें बहुत ही कम उपलब्ध रहती है। अधिकांश विद्यालय और विश्वविद्यालय के संचालक पुस्तकालय के नाम पर भी घोटाला करने से पीछे नहीं रहते। अधिकांश विद्यालयों में पुस्तकालय के लिए विद्यालय का सबसे खराब और छोटे कोने का कमरा दे दिया जाता है। जिसमें उचित व्यवस्था का आभाव हमेशा दिखता है। ऐसे में सरकार को पुस्तकालय के उपर भी संज्ञान लेना चाहिए। बिहार, उत्तर प्रदेश या अन्य राज्यों के अधिकांश प्रतियोगी परीक्षाओं के जो अभ्यार्थी है उन्हें उचित जगह नहीं मिल पाती जिसकी वजह से वो पार्क या खुले मैदान में बैठ कर धूप बरसात को झेलते हुए प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते हैं। सार्वजनिक पुस्तकालयों में हर विषय की प्रत्येक प्रतियोगी पुस्तक उपलब्ध हो जिससे गरीब छात्र भी लाभान्वित हो सकें।