बक्सर | सुबे के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे बिहार के स्वास्थ्य व्यवस्था के बारे में बता रहे हैं कि पहले लालटेन युग था, अब स्वास्थ्य व्यवस्था में काफी सुधार हुआ है। लेकिन आप तस्वीरों में भैंस बंधा हुआ देख सकते हैं। अस्पताल के आसपास गोबर तथा अस्पताल के टूटा छज्जा दिखाई दे रहा है। यह अस्पताल इंसानों के इलाज के लिए बना है, मगर वर्षों से यहां बेजुबान जानवर बसेरा करते हैं। तस्वीरों में देख सकते है कि किस तरह अस्पताल पर भैंस का कब्जा है। देखने से ऐसा लगता है अस्पताल नहीं यह भैंसों का तबेला है।डॉक्टर और नर्स के बैठने की जगह पर भैंस को बांधकर खिलाया जाता है।
इलाज के लिए दर दर भटकते हैं लोग
कोरोना काल में जब बीमार मरीजों को इलाज की जरूरत पड़ती है, तो इस उपस्वास्थ्य केंद्र से लोगों को मायूसी मिलती है तथा उन्हें झोलाछाप डॉक्टर या कई किलोमीटर दूर बक्सर जाना पड़ता है। बक्सर जिले सिमरी प्रखंड के दुल्हपुर पंचायत का उप स्वास्थ्य केंद्र अपने अंदर कई अरमानों को लेकर विगत कई वर्षों से घुट घुट कर जी रहा है। कभी यह भवन पंचायत के लिए शान था। वर्तमान समय में यह प्रखंड और पंचायत के लिए बदनामी का माध्यम बन चुका है।अति प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधा बेहतर करने के लिए केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकारों द्वारा पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है। लेकिन विभागीय खामियां व्यवस्था पर हावी है।
स्वास्थ्य कर्मियों के वजह से है बदहाल
इस उप स्वास्थ्य केंद्र को इसलिए बनाया गया था कि क्षेत्र के लोगों को छोटी-छोटी बीमारियों के लिए शहरों का चक्कर न काटना पड़े। बावजूद इसके पदस्थापित कुछ स्वास्थ्य कर्मियों की वजह से स्वास्थ्य व्यवस्था सुचारू रूप से बहाल नहीं है। पूर्व में यहां 13 स्टाफ काम करते थे जो अब 2 कर्मचारी ही हैं। वह भी कभी कभार आ जाते हैं।व्यवस्था की खामियों ने इस अस्पताल के वजूद को खत्म कर दिया। हालत यह है कि अस्पताल चारागाह में तब्दील हो गया है। चिकित्सक है नहीं तो ग्रामीणों ने इस अस्पताल को गाय भैंस बांधने का सेंटर बना रखा है।
इमरजेंसी होने पर आंसू बहाने को है मजबूर
10 हजार की आबादी वाले इस गांव के लोग आज भी कुव्यवस्था का दंश झेल रहे हैं। कई बार ऐसा हुआ कि कोई शख्स बेहद गंभीर स्थिति में पहुंच गया तो प्राथमिक इलाज के लिए उसके परिजनों को दूरस्थ अस्पतालों तक पहुंचना पड़ता है। इस बीच मरीज की स्थिति अगर चिंताजनक हो गई तो आखिर में परिजनों के पास सिर्फ आंसू बहाने के अलावा कुछ नहीं बचता।ग्रामीणों की माने तो जब अस्पताल अस्तित्व में आया तब से लेकर कुछ वर्षों तक यह व्यवस्था काफी अच्छी थी, लेकिन पिछले कई वर्षों से इस अस्पताल की अब सुध लेने वाला कोई नहीं है। खासकर इस कोरोना संकट में, जब लोगों को इलाज की जरूरत है। वर्षों से बने अस्पताल में जाने का रास्ता तक नहीं है। कोई प्रतिनिधि का इस पर ध्यान नहीं है। ऐसे में इस उप स्वास्थ्य केंद्र का बदहाल होना स्वास्थ्य व्यवस्था पर एक बड़ा सवाल खड़ा करता है। बहरहाल अब ग्रामीण इसे ही अपनी नियति समझ चुके हैं और बदहाल उप स्वास्थ्य केंद्र की उम्मीद छोड़ कहीं और इलाज कराने पर मजबूर है।
इधर जब उप स्वास्थ्य केंद्र में पदस्थापित एएनएम कुसुम कुमारी से बात की गई तो वहां हुए खामियों का रोना रोने लगी और अपनी मजबूरियां गिनाने लगी। बहरहाल सच्चाई क्या है अब यह किसी से छिपी नहीं है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि अगर स्वास्थ्य व्यवस्था का यह हाल होगा तो लोगों के इलाज का क्या होगा। वह भी इस कोविड-19 महामारी के संकट में। जहां के सांसद सह केंद्रीय परिवार कल्याण मंत्री अश्विनी चौबे हैं। वही बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे बक्सर जिले के प्रभारी मंत्री बनाए गए हैं।