भारत और चीन के बीच तनाव चरम पर है. गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प में 20 सैनिकों के शहीद होने के बाद सियासत भी सरगर्म है. नई दिल्ली से लेकर बीजिंग तक, वार्ता और बैठकों का दौर चल रहा है. दुनिया में सर्वाधिक आबादी वाले शीर्ष दो देशों के बीच बढ़ते तनाव पर संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रमुख एंटोनियो गुटेरेस ने भी चिंता जताई है. लेकिन भारत की चिंता केवल चीन से तनाव नहीं, चुनौतियां ‘पांच तरफा’ है. एक तरफ जहां चीन से तनाव चरम पर पहुंचता दिख रहा है, वहीं दूसरी तरफ चीन से निकले वायरस कोरोना ने नाक में दम कर रखा है. सदियों पुराना मित्र नेपाल भी आंखें दिखा रहा है, तो आतंक का जनक पाकिस्तान सीमा पर लगातार गोलीबारी कर रहा है. लॉकडाउन के कारण थम सा गया इकोनॉमी का पहिया अलग सरदर्द बढ़ा रहा है. ऐसे में, एकसाथ सामने आ पड़ीं इन चुनौतियों से मोदी सरकार कैसे निपटती है, सबकी निगाहें इसी ओर लगी हैं.
चालबाज चीन पर नहीं कर सकते यकीन



लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) पार कर भारतीय सीमा में घुस आई चीनी फौज के साथ गतिरोध दूर करने के लिए सैन्य स्तर पर बातचीत चल रही थी. अभी चंद रोज पहले ही चीनी फौज दो किलोमीटर पीछे भी हटी. इससे लगा कि वार्ता सही दिशा में जा रही है, लेकिन ये चीन चालबाज है. चालबाजी इसकी फितरत. चीन सरहद के पास सैन्य ताकत भी बढ़ाता रहा और भारत के साथ बातचीत के जरिए गतिरोध दूर कर लेने का दिखावा भी करता रहा. जब भारतीय सेना भी गतिरोध दूर करने के लिए जिन बिंदुओं पर सहमति बनी थी, उन्हें लागू कर रही थी तब चीनी सैनिकों ने लोहे की रॉड और पत्थर से 20 सैनिकों को शहीद कर दिया. इससे सैन्य स्तर पर बातचीत के जरिए गतिरोध दूर करने की संभावनाओं को जहां धक्का लगा है, वहीं यह संदेश भी मिल गया है कि चीन 21वीं सदी में भी बदला नहीं है. उसपर अभी भी यकीन नहीं किया जा सकता.
आंखें दिखा रहा सदियों पुराना दोस्त नेपाल



नेपाल और भारत के रिश्ते न सिर्फ सत्ता और सरकारें, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक आधार पर भी बेहद घनिष्ठ रहे हैं. जिस नेपाल से भारत का रोटी-बेटी का नाता रहा है, सदियों पुराना यह मित्र भी अब आंखें दिखा रहा है. यह परिवर्तन तब से हुआ है, जब से नेपाल की सत्ता चीन की तरफ झुकाव रखने वाली कम्युनिस्ट पार्टी के हाथ में गई है. नेपाल ने संविधान में संशोधन कर नया नक्शा जारी किया है, जिसमें भारत के तीन स्थानों लिम्पियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी को अपना भाग बताया है. सरकार के सामने पुराने मित्र को साधे रखने के साथ ही वहां चीन के बढ़ते प्रभाव की चुनौती भी है.
एल.ओ.सी पर पाकिस्तान से अघोषित युद्ध



कहने के लिए भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर है, लेकिन लाइन ऑफ कंट्रोल (एलओसी) पर पड़ोसी देश इसे मानता कब है. साल के 12 महीने जवानों को सरहद की हिफाजत के लिए खुद से अलग होकर अस्तित्व में आए पाकिस्तान से अघोषित युद्ध लड़ना पड़ता है. पाकिस्तान कभी आतंकियों की घुसपैठ कराने के लिए कवर फायर देता है, तो कभी अनायास ही भारतीय चौकियों और सीमावर्ती गांवों को निशाना बना गोले दागता है. आतंक का पनाहगाह पाकिस्तान अस्तित्व में आने के बाद से ही भारत के लिए चुनौती बना रहा है.
कोरोना बढ़ा रहा सरदर्द, नियंत्रित करना चुनौती



चीन से ही शुरू हुआ कोरोना वायरस वैसे तो पूरी दुनिया में तबाही मचा रहा है, लेकिन पिछले कुछ दिनों के आंकड़े देखें तो यह भारत का सरदर्द कुछ अधिक ही बढ़ा रहा. देश में 66 दिन के लॉकडाउन के बाद जब पाबंदियों में ढील दी गई, कोरोना भी अनलॉक हो गया. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली समेत देश के चार में से तीन महानगर कोरोना के बड़े हॉटस्पॉट के तौर पर उभरे हैं. इनमें आर्थिक राजधानी मुंबई और चेन्नई भी शामिल हैं. देश में कोरोना के मरीजों की तादाद 3.5 लाख के करीब पहुंच गई है, तो मृतकों की संख्या भी लगभग 10000. कोरोना की रफ्तार पर लगाम लगाना सरकार के लिए बड़ी चुनौती साबित हो रहा.
‘कोरोना चक्र’ में फंसी अर्थव्यवस्था कैसे आएगी पटरी पर



अर्थव्यवस्था एक तो पहले से ही सुस्ती का सामना कर रही थी, रही-सही कसर कोरोना की महामारी ने पूरी कर दी. कोरोना के कारण लागू हुए लॉकडाउन के कारण देश की रफ्तार थम गई, तो उद्योग और व्यापार भी. फैक्ट्रियों से मशीनों का शोर गायब रहा तो तो सुस्ती से उबरने की कोशिशों में जुटी अर्थव्यवस्था के प्रयास भी शिथिल पड़ गए. रोजगार छिन जाने से रोटी का संकट उत्पन्न होने पर प्रवासी मजदूर अपनी मिट्टी की तरफ खींचे चले गए, तो बेरोजगारी की दर भी कई साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई. सरकार ने इकोनॉमी को संकट से उबारने के लिए 20 लाख करोड़ का पैकेज घोषित करने के साथ ही ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान की शुरुआत जरूर की है, लेकिन नेगेटिव ग्रोथ रेट के अनुमानों के बीच अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना भी आसान नहीं नजर आ रहा.