निरज कुमार त्रिपाठी । कोविड 19 की वजह से देश में अब तक चार दौर का लॉक डाउन किया जा चुका है। इस महामारी से निकट भविष्य में निजात मिलती नहीं दिख रही है। इस लॉक डाउन में सभी वर्ग बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। अधिवक्ता वर्ग इसमें सर्वाधिक प्रभावित वर्ग में शामिल है। परन्तु अधिवक्ताओं के मुद्दे पर सरकारें मौन हैं। इन्हीं मुद्दों को लेकर भारत के कोने कोने से अधिवक्ता गण एक साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए तीन दिवसीय एडवोकेट्स मीट कार्यक्रम के तहत आनलाइन जुड़े तथा कोविड19 प्रबंधन तथा अधिवक्ता हितों पर चर्चा की।



इस आनलाइन एडवोकेट मीट में सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता, बिहार बार काउंसिल के सदस्य, पटना उच्च न्यायालय के अधिवक्तागण, इलाहाबाद हाईकोर्ट के अधिवक्तागण, कोलकाता हाईकोर्ट के अधिवक्तागण तथा रांची हाईकोर्ट के अधिवक्तागण समेत दिल्ली, यूपी, बिहार, झारखंड राज्यों के निचली अदालतों के अधिवक्तागण जुटे तथा अपने विचार रखे।
राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित इस वर्चुअल मीट का संचालन अधिवक्ता अरशद मोहमम्द जफर ने की। उन्होंने पांच राज्यों के हाई कोर्ट, सिविल कोर्ट तथा सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ताओं को बारी बारी से वक्तव्य देने के लिए आमंत्रित किया। विषय प्रवेश आरा के युवा अधिवक्ता मुकेश कुमार सिन्हा ने कराते हुए कहा कि कोविड-19 एक असाधारण परिस्थिति है। इसमें समाज का हर वर्ग प्रभावित हुआ है। अधिवक्ता भी प्रभावित हुए हैं। परन्तु कोविड प्रबंधन के दौरान इस वर्ग को ध्यान में रखे बिना सरकार की नीतियां बनाई जा रही हैं। अधिवक्ता वर्ग इस वजह से पिड़ीत है।



वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से हुई इस ऑनलाइन सम्मिट में अधिवक्ताओं ने एक स्वर से कोविड-19 प्रबंधन के तहत लॉक डाउन में बंद कचहरी को धीरे-धीरे खोलने की वकालत की। साथ ही सुप्रीम कोर्ट तथा विभिन्न हाई कोर्ट द्वारा जारी गाईड लाईन के अनुरूप चल रहे वर्चुअल कोर्ट पर अपनी राय रखी।
सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट आन रिकार्ड स्वेतांक शांतनु ने अल्टरनेट दिवस पर व्यवहार न्यायालयों में काम पर जोर दिया है। उन्होंने कहा कि वर्चुअ कोर्ट को फिजिकल कोर्ट का स्थापन्न नहीं माना जा सकता है। उन्होंने कहा कि अधिवक्ता वर्ग में महामारी के संक्रमण का खतरा अधिक है। इसलिए अधिवक्ता वर्ग पर खास ध्यान देने की जरूरत है।
सुप्रीम कोर्ट के हीं अधिवक्ता प्रताप शंकर ने कहा कि कोर्ट को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए अधिवक्ताओं को काम करते रहना होगा। जेल में बंद या किसी वजह से कानूनी प्रक्रिया का सामना कर रहे लोगों को उनके वैधानिक अधिकारों की बहाली के लिए कानूनी सहायता का मिलना जरूरी है।



उन्होंने कहा कि कोविड की वजह से अधिवक्ता वर्ग का वजूद संकट में है। उन्होंने कहा कि अदालतें यदि काम करना शुरू नहीं करेंगी तो लोगों का आक्रोश बढ़ सकता है। लोग न्याय पाने के लिए नए तरह का आंदोलन शुरू कर सकते हैं। इस स्थिति से निपटने के लिए उन्होंने सुझाव दिया कि कोर्ट कार्य दो पालियों में शुरू किया जाना चाहिए। मिसलेनियस तथा रेगुलर तथा अपील मैटर अलग अलग पालियों में शुरू किया जा सकता है।
बिहार बार काउंसिल के सदस्य राजीव दूबे ने कहा कि सुनवाई की रफ्तार अत्यंत धीमी है। इसलिए कोर्ट में छोटे मामलों की संख्या लगातार बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि क्लाइंट का न्यायालय में बुलाना फिलहाल संभव नहीं। परन्तु इसका उचित विकल्प ढूंढना होगा। उन्होंने कहा कि सरकार की मंशा अधिवक्ताओं पर ध्यान देने की नहीं लगती। अधिवक्ता राजेन्द्र नाथ सिन्हा ने कहा कि सभी कोर्ट में सभी प्रकार की ई फाईलिंग तत्काल शुरू होनी चाहिए।
अधिवक्ता राजेश कुमार पांडेय ने कहा कि हमें एकजुट होकर सरकार के समक्ष अपनी बात मजबूती से पहुंचानी चाहिए। अधिवक्ता निरंजन पांडेय ने कहा कि आज समय की मांग है कि हम एकजुटता के साथ सभी अधिवक्ता साथी के लिए एक मंच से आवाज उठायें। उन्होंने युवा अधिवक्ताओं के लिए स्टाइपेंड की मांग की।
इस वर्चुअल सम्मिट में प्रेम प्रकाश (सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली),श्वेतांक शंतनु (सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली), प्रताप शंकर (सुप्रीम कोर्ट, नई दिल्ली), इलाहाबाद उच्च न्यायालय के अधिवक्ता अशोक कुमार पांडेय, अधिवक्ता वंदना सिंह, मुकेश कुमार सिन्हा, राजेन्द्र नाथ सिन्हा(हाईकोर्ट पटना), उमेश मिश्र (सिविल कोर्ट बिक्रमगंज), शशि कांत उपाध्याय(सिविल कोर्ट बक्सर), रसीद खान(सिविल कोर्ट सासाराम), गोपाल शरण वर्मा(सिविल कोर्ट आरा) आदि उपस्थित हुए।