जब भाषा की मर्यादा का उल्लेख होता है तब यह आवश्यक समझा जाता है कि हम अपने दैनिक जीवन आचरण और व्यवहार में मर्यादित भाषा का उपयोग करें कृषि उद्योग व्यापार चिकित्सा शिक्षा सहित सभी क्षेत्रों में भाषा की मर्यादा का महत्व है। पिछले कुछ वर्षों से सार्वजनिक जीवन और राजनीति मैं भाषा की मर्यादा लगभग समाप्त हो चुकी है राजनीतिक दल दोषारोपण और सत्ता की लालसा में जिस प्रकार की भाषा का उपयोग करते हैं वह किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कहीं कहीं जा सकती। राजनीतिक दल एक दूसरे पर दोषारोपण में इस प्रकार व्यस्त हो जाते हैं कि भाषा के मर्यादा को पूरी तरह से समाप्त कर देते हैं मुझे स्मरण है कुछ कुछ माह पूर्व टीवी पर बहस के दौरान एक प्रवक्ता ने दूसरे प्रवक्ता को जूता दिखाकर अपनी निकृष्ट मानसिकता का प्रमाण दिया। चर्चा बिंदुओं पर सहमति असहमति पर हो सकती है होती है किंतु इस दौरान तथ्य से परे अनर्गल एवं आधारहीन बात की जाए तो इसे सार्वजनिक जीवन की बड़ी विसंगति कहा जा सकता है दुर्भाग्य यह है कि इस बड़ी और दुर्भाग्यपूर्ण विसंगति पर किसी भी राजनीतिक दल का नियंत्रण नहीं है राजनीतिक दल अपने प्रवक्ताओं को जब टीवी चैनल पर डिबेट के लिए भेजते हैं उन्हें इस बात की ताकि जाना चाहिए कि वह मर्यादित भाषा का उपयोग कर संसदीय भाषा में बहस करें।



अभी पिछले दिनों कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष एवं पूर्व सांसद राहुल गांधी अमर्यादित भाषा के कारण न्यायालय द्वारा दोषी करार दिए गए यह एक बड़ा उदाहरण है कि सार्वजनिक जीवन में ऐसी भाषा का इस्तेमाल करें जो स्वीकार हो। इस बड़े उदाहरण के बावजूद भी हमारे राजनीतिक दलों के प्रवक्ताओं और शीर्ष नेताओं को यह समझ में नहीं आता कि वह किस प्रकार की भाषा का इस्तेमाल करें।
देश भाषा और आचरण के जिस संक्रमण काल से गुजर रहा है अगर इससे बाहर निकलने की कोशिश नहीं की गई तो हम देश को गहरी अंधेरी गुफा में धकेल रहे हैं जहां से निकलने का रास्ता खोजना मुश्किल होगा। चुनाव आयोग न्यायालय इस बाबत कठोर कदम उठाने होंगे इसके साथ ही सभी राजनीतिक दलों को इस बिंदु पर अपने दलगत हितों से ऊपर उठकर विचार करना होगा ।



मनोहर मंजुल, राजनीतिक विश्लेषक।