Thursday, September 21, 2023

Editorial : अमेरिका के इस बयान के निहितार्थ..

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Kanchan Sharma
Kanchan Sharma is an Indian journalist and media personality. He serves as the Editor in Chief of News9 Aryavart and hosts the all news on News9 Aryavart in India.

यूँ तो अमेरिका के हर बयान के गहरे निहितार्थ होते हैं और जब भारत के बारे में हो तो और निहितार्थ गहरा हो जाता है । यह अलग बात है भारत का प्रतिपक्ष इस बयान से अपनी राय पृथक रखता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा से ठीक पहले व्हाइट हाउस के एक वरिष्ठ अधिकारी की टिप्पणी गौर करने लायक है, जिसमें भारत को एक जीवंत लोकतंत्र बताया गया । भारत का प्रतिपक्ष इससे अलहदा बात करता है।

अमेरिकी राष्ट्रपति भवन के अधिकारी जॉन किर्बी ने तो यहां तक कहा कि जिसको भारतीय लोकतंत्र की साख पर विश्वास न हो वह दिल्ली घूमकर कथन की प्रमाणिकता जान ले। लोकतंत्र-लोकतंत्र के खेल के जरिये दुनिया की तमाम सरकारों को बनाने और बिगाड़ने के उपक्रम में अमेरिका दशकों तक एक पक्ष रहा है। अमेरिका के बारे में अकसर कहा भी जाता है कि अमेरिका की सारी नीतियां अमेरिका से शुरू होकर अमेरिका पर ही खत्म हो जाती हैं। बहुत ज्यादा समय नहीं हुआ जब अमेरिकी विदेश मंत्रालय की धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट में भारत में अल्पसंख्यकों की दशा को लेकर सवाल खड़े किये गये थे। अमेरिका की कई अन्य संस्थाएं भी गाहे-बगाहे ऐसे सवाल खड़ी करती रही हैं। जाहिर है अमेरिका चाहता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा से पहले माहौल बनाया जाये ताकि बड़े रक्षा सौदों को अंतिम रूप देने में कोई पुरानी कसक बाधक न बने। 

वैसे भारत को लोकतंत्र की जीवंतता को लेकर किसी अमेरिकी सर्टीफिकेट की आवश्यकता नहीं है। आजादी का अमृतकाल मनाते देश में आजादी के बाद भले ही एक दल या कई दलों की सरकारें बनी हों, वामपंथ या दक्षिणपंथ के रुझान की सरकारें बनी हों, हर बार सत्ता का हस्तांतरण शांतिपूर्वक ही हुआ है। आज भी स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा बनाया गया संविधान हमारा/ देश का मार्गदर्शक है। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र अपनी जीवंतता से पूरी दुनिया के लोकतांत्रिक देशों का मार्गदर्शन कर रहा है। निस्संदेह, राजनीतिक विद्रूपताओं व जीवन मूल्यों की गिरावट से कुछ विसंगतियां सामने आई हैं, लेकिन सदियों तक साम्राज्यवादी ताकतों के दोहन से उपजी अथाह गरीबी व एक बड़ी आबादी भी इसके मूल में रही हैं।

इसे संयोग भी माना जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा ऐसे समय पर हो रही जब कुछ दिन पहले तक प्रतिपक्षी कांग्रेसी नेता राहुल गांधी मोदी सरकार की रीति-नीतियों को लेकर अमेरिका में तमाम सवाल खड़े कर आए हैं। अच्छा तो यह माना जाता है कि देश में सत्तापक्ष से प्रतिपक्ष के कितने भी मतभेद हों, विदेश की धरती पर भारतीय लोकतंत्र की छवि को लेकर कोई आंच नहीं आनी चाहिए। बहरहाल, जीवंत भारतीय लोकतंत्र की खूबियां दुनिया को खुद-ब-खुद आकर्षित करती रही हैं। जिसके मूल में भारतीय लोकतंत्र की मजबूत साख ही है। वैसे अमेरिका के मौजूदा रुख में आये बदलाव के मूल में तेजी से बदलते वैश्विक सामरिक समीकरण भी हैं। जिसके संतुलन के लिये अमेरिका को भारत जैसे बड़े देश के साथ की जरूरत है। खासकर साम्राज्यवादी चीन की विस्तारवादी नीतियों पर अंकुश लगाने के लिये। 

सर्व ज्ञात तथ्य है, पिछले कुछ वर्षों में चीन एलएसी पर भारत के लिये जैसी चुनौतियां पैदा करता रहा है उसका मुकाबला भी अमेरिका जैसी विश्व शक्ति के सहयोग से संभव है। बहरहाल, भारत के लिये यह गौरव की बात है कि 21 से 24 जून तक चलने वाली प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिकी यात्रा रक्षा सौदों के अलावा भी कई मायनों में महत्वपूर्ण है। वे अमेरिकी सांसदों के बुलावे पर अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र को भी वे संबोधित करेंगे। निस्संदेह, मौजूदा हालात में अमेरिका चीन के मुकाबले के लिये भारत को एक रणनीतिक साझेदार के रूप में देखता है। हाल ही में भारत व अमेरिका ने रक्षा औद्योगिक सहयोग के लिये एक रोडमैप को अंतिम रूप दिया है। इससे जहां अमेरिका के सामरिक व कारोबारी हित पूरे होते हैं, वहीं आधुनिक व उन्नत तकनीक के साथ भारत के आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्यों को बल मिलता है। 

हाल के वर्षों में भी दोनों देशों के बीच कई महत्वपूर्ण करार हुए हैं, जिसमें आपूर्ति श्रृंखला को स्थिरता देने, रक्षा खरीद को सुगम बनाने तथा एक-दूसरे के ठिकानों के इस्तेमाल पर सहमति बनी है। निस्संदेह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीनी आक्रामकता के चलते दोनों देशों को रक्षा संबंधों को मजबूत बनाने की जरूरत है।

राकेश दुबे, राजनीतिक विश्लेषक।

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