समय में हुए परिवर्तन ने हमारे पारंपरिक संगीत पर भी अपनी खास छाप छोड़ी है। जिसका परिणाम है कि कई पारंपरिक संगीत अपनी चमक खोने लगे हैं। इन्हीं संगीतों में फाग भी शामिल है। होली में ढ़ोलक, झाल और मंजीरे पर गाया जाने वाला फाग अब बहुत ही कम स्थानों पर सुनने को मिलता है। पाश्चात्य संस्कृति आज के युवाओं पर इस कदर हावी हो चुकी है कि वह अपनी पुरानी परंपराओं को भूल चुके हैं। एक समय था जब बंसत पंचमी के बाद से ही गांवों में जगह-जगह मतवालों की टोली बैठकर फाग गाती हुई मिलती थी। प्रतिदिन किसी ने किसी के दरवाजे पर फाग का आयोजन होता था। मतवालों की टोली बैठती थी और घर में भांग की पिसी जाती थी। इसके बाद महिलाओं द्वारा घर में पकवान बनाए जाते थे। यह क्रम होली के दिन तक चलता। लेकिन समय बदला गांवों में वैमनस्य फैला और पाश्चात्य संस्कृति की मार इस त्योहार पर भी पड़ी।
“ए जाजीमानी तोहार सोने के केवाड़ी, तोहार बाल-बच्चा जिये चार गो गोइठा द” शायद आज के बच्चे या युवा होली से पूर्व संध्या पर होलिका दहन की सुनहरी गीत से अनजान होते जा रहे हैं। एक समय था जब इस गीत की गूंज शहर से लेकर गांव तक गलियों में सुनाई देती थी। लेकिन गांव से शहरों तक कि ये पुरानी परम्परा अब विलुप्त होती जा रही हैं। इनके जगह अब भौंडापन ने ले ली है। जब टोली बनाकर घर घर जा कर गोइठा मांगी जाती थी तब उद्देश्य होता है कि सबकी भागीदारी हो समाज की बुराइयों को जलाया जाए और आपसी सौहार्द कायम हो। लेकिन शायद अब सौहार्द शब्द भी खत्म होता जा रहा है।



स्थितियां बदली,परिस्थितियां बदली और युवाओं के बीच से यह होलिका दहन की यह परम्परा दूर होता जा रहा है। पहले शामिल होने के लिए युवाओं के बीच होड़ मचती थी। आज उस स्थल पर लोग केवल आखत डालने के लिए पहुंचते हैं। ऐसे में होलिका जलाने की परंपरा केवल एक रस्म अदायगी होकर रह गई है। रंग और पकवानों की तरह गीतों के बिना भी लोक पर्व होली की कल्पना नहीं की जा सकती। होली के कुछ हफ़्तों पहले से ही ढोल-मंजीरे के साथ टोलियां बनाकर होली गाए जाने लगती थी।



होली के दिन घर-घर में गीत गाते हुए, फाग गाते हुए ही रंग-अबीर लगाने, पुए-पकवान खाने की परंपरा रही है । लेकिन अब धीरे-धीरे गांवों-शहरों में सामूहिक रूप से होली गाने-बजाने की परंपरा की यह डोर कमजोर पड़ रही है। इस ख़ालीपन को भरने के लिए अब इस मौसम में होली गीतों से सजे ऑडियो और वीडियो एल्बम बड़ी संख्या में बाजार में आ जाते हैं। भोजपुरी म्यूज़िक एल्बमों की बात करें तो इस बार होली में बाजार में सैकड़ों से अधिक एल्बम विभिन्न म्यूज़िक कंपनियों ने बाज़ार में उतारे हैं। अब होली की आहट देने वाले वहीं पुराने होली गीत के मदहोश कर देने वाली धुन और गीत सुनाई नहीं दे रहे।



बंगला में उड़ेला अबीर….,आज बिरज में होरी रे रसिया…., होरी खेलें रघुबीरा अवध में होरी खेलें रघबीरा .., कबीरा सररररर… जैसे पारंपरिक होली गीत अब सुनने को नहीं मिलते और न ही लोगों के घरों पर एकत्र होकर होली गीत गाने वालों के दर्शन ही होते हैं। यह परंपरा ही अब खत्म हो गई है। हां, अब उनकी जगह फूहड़ और अश्लील गाने सुनने को मिल रहे। सवारी वाहनों जीपों, टेंपो और टैक्सियों में फूहड़ गानों वाले कैसेट की भरमार हो गई। आधुनिकता के कारण पारंपरिक होली गीतों की परपंरा ही विलुप्त होती जा रही है। परंतु अब रंगों से सराबोर कर देने वाली होली में मिठास घोलने वाली जोगीरा की बोली अब खामोश हो गयी है।