Wednesday, September 27, 2023

रमजान : संयम और समर्पण के साथ खुदा की इबादत का महीना | प्रेम, भाईचारे और इंसानियत का संदेश देता है माह-ए-रमजान |

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Bunty Bhardwaj
Bunty Bhardwaj is an Indian journalist and media personality. He serves as the Managing Director of News9 Aryavart and hosts the all news on News9 Aryavart.

साल के बारह महीनों में रमजान का महीना मुसलमानों के लिए खास मायने रखता है। यह महीना संयम और समर्पण के साथ खुदा की इबादत का महीना माना जाता है जिसमें हर आदमी अपनी रूह को पवित्र करने के साथ अपनी दुनियादारी की हर हरकत को पूरी तत्परता के साथ वश में रखते हुए केवल अल्लाह की इबादत में समर्पित हो जाता है।  जिस खुदा ने आदमी को पैदा किया है उसके लिए सब प्रकार का त्याग मजबूरी नहीं फर्ज बन जाता है। इसीलिए तकवा लाने के लिए पूरे रमजान के महीने रोजे रखे जाते हैं। रमजान के महीने में की गई खुदा की इबादत बहुत असरदार होती है। इसमें खान-पानसहित अन्य दुनियादारी की आदतों पर संयम कर जिसे अरबी में ‘सोम’ कहा जाता है आदमी अपने शरीर को वश में रखता है साथ ही तराबी और नमाज पढ़ने से बार-बार अल्लाह का जिक्र होता रहता है जिसके द्वारा इंसान की आत्मा (रूह) पाक-साफ होती है। इंसान गलतियों का पुतला भी होता है। अतः अपनी गलतियों को सुधारने का मौका भी रमजान के रोजे में मिलता है। गलतियों के लिए तौबा करने एवं अच्छाइयों के बदले बरकत पाने के लिए भी इस महीने की इबादत का महत्व है। इसीलिए इन दिनों जकात देने का खासा महत्व है। जकात का मतलब है अपनी कमाई का ढाई प्रतिशत गरीबों में बांटना। वस्तुतः जकात देने से आदमी के माल एवं कारोबार में खुदा बरकत करता है। इस्लाम में रोजे, जकात और हज यह तीनों फर्ज हैं मजबूरी नहीं। अतः 12 साल से ऊपर के बालिक रोजा रखना अपना फर्ज समझते हैं। ईद से पहले फितरा दिया जाता है जिसमें परिवार का प्रत्येक व्यक्ति ढाई किलो के हिसाब से गेहूं या उसकी कीमत की रकम इकठ्ठा कर उसे जरूरतमंदों में बांटता है। रमजान का महीना एक गर्म पत्थर से मायने रखता है। उस जमाने में अरब में आज से भी भीषण गरमी होती थी। अतः गरमी से तपते पत्थर से नसीहत लेते हुए, कि जैसे यह सूरज की किरणों से तप रहा है, वैसे ही तुम अल्लाह की इबादत में तप कर अपने तन-बदन एवं रूह को पाक-साफ बना लो।

रमजान: अल्लाह से इनाम लेने का महीना

खुद को खुदा की राह में समर्पित कर देने का प्रतीक पाक महीना ‘माह-ए-रमजान’ न सिर्फ रहमतों और बरकतों की बारिश का वकफा है बल्कि समूची मानव जाति को प्रेम, भाईचारे और इंसानियत का संदेश भी देता है। मौजूदा हालात में रमजान का संदेश और भी प्रासंगिक हो गया है। इस पाक महीने में अल्लाह अपने बंदों पर रहमतों का खजाना लुटाता है और भूखे-प्यासे रहकर खुदा की इबादत करने वालों के गुनाह माफ हो जाते हैं। इस माह में दोजख (नरक) के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं और जन्नत की राह खुल जाती है। रोजा अच्छी जिंदगी जीने का प्रशिक्षण है जिसमें इबादत कर खुदा की राह पर चलने वाले इंसान का जमीर रोजेदार को एक नेक इंसान के व्यक्तित्व के लिए जरूरी हर बात की तरबियत देता है। पूरी दुनिया की कहानी भूख, प्यास और इंसानी ख्वाहिशों के गिर्द घूमती है और रोजा इन तीनों चीजों पर नियंत्रण रखने की साधना है। रमजान का महीना तमाम इंसानों के दुख-दर्द और भूख-प्यास को समझने का महीना है ताकि रोजेदारों में भले-बुरे को समझने की सलाहियत पैदा हो। रोजे के दौरान झूठ बोलने, चुगली करने, किसी पर बुरी निगाह डालने, किसी की निंदा करने और हर छोटी से छोटी बुराई से दूर रहना अनिवार्य है। रोजे रखने का असल मकसद महज भूख-प्यास पर नियंत्रण रखना नहीं है बल्कि रोजे की रूह दरअसल आत्म संयम, नियंत्रण, अल्लाह के प्रति अकीदत और सही राह पर चलने के संकल्प और उस पर मुस्तैदी से अमल में बसती है।अमूमन साल में 11 महीने तक इंसान दुनियादारी के झंझावातों में फंसा रहता है लिहाजा अल्लाह ने रमजान का महीना आदर्श जीवनशैली के लिए तय किया है। रमजान का उद्देश्य साधन सम्पन्न लोगों को भी भूख-प्यास का एहसास कराकर पूरी कौम को अल्लाह के करीब लाकर नेक राह पर डालना है। साथ ही यह महीना इंसान को अपने अंदर झांकने और खुद का मूल्यांकन कर सुधार करने का मौका भी देता है। रमजान का महीना इसलिए भी अहम है क्योंकि अल्लाह ने इसी माह में हिदायत की सबसे बड़ी किताब यानी कुरान शरीफ का दुनिया में अवतरण शुरू किया था। रहमत और बरकत के नजरिए से रमजान के महीने को तीन हिस्सों (अशरों) में बांटा गया है। इस महीने के पहले 10 दिनों में अल्लाह अपने रोजेदार बंदों पर बंदों पर रहमतों की बारिश करता है। दूसरे अशरे में अल्लाह रोजेदारों के गुनाह माफ करता है और तीसरा अशरा दोजख की आग से निजात पाने की साधना को समर्पित किया गया है।

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